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आप्तवाणी - ३
हाज़िरी से उत्पन्न होती है, उसी प्रकार आत्मा की हाज़िरी से यह सब उत्पन्न होता है। यह तो, पराई चीज़ को ले बैठे हैं ।
आत्मा और देह का संबंध इतना अलग है, जितना कि लिफ्ट में खड़ा हुआ व्यक्ति और लिफ्ट, वे दोनों अलग हैं । लिफ्ट सभी कार्य करती है। आपको तो सिर्फ बटन ही दबाना पड़ता है, इतना ही कार्य करना होता है। इतना नहीं समझने से लोग भयंकर अशाता और पीड़ाएँ भोगते हैं । इस लिफ्ट को उठाने जाएँ, यह तूफान उसके जैसा है। ये मन-वचन-काया तीनों ही लिफ्ट हैं। सिर्फ 'लिफ्ट' का बटन ही दबाना है । एक आत्मा है और दूसरा अहंकार है। जिसे सांसारिक पौद्गलिक वस्तुओं की आवश्यकता हो, उसे अहंकार करके बटन दबाना है । और जिसे संसारी वस्तुएँ नहीं चाहिए, उसे आत्मा के भाव से बटन दबाना है। आत्मा के भाव से क्यों? तो इसलिए कि, 'छूटना है, मोक्ष में जाना है। अब उसे अहंकार करके आगे नहीं बढ़ाना है।'
यहाँ पर लग गई हो तो अहंकार कहता है कि 'मुझे बहुत लग गई', तो दुःख उठाता है और यदि अहंकार कहे कि 'मुझे बिल्कुल नहीं लगी', तो दुःख नहीं होगा। मनुष्य सिर्फ अहंकार की करता है । वीतरागों के इस गूढ़ विज्ञान को यदि समझो तो इस जगत् में किसी तरह का दुःख होता होगा!? आत्मा खुद तो परमात्मा ही है ! आत्मा चैतन्य है और जड़ संबंध है। खुद संबंधी और जड़ संबंध मात्र है । हमारे साथ संयोगों का संबंध हुआ है, बंध नहीं हुआ । और फिर संयोग वियोगी स्वभाव के हैं। एक बार ‘ज्ञानीपुरुष' से आत्मा प्राप्त कर लेने के बाद संयोग संबंध पूरा ही वियोगी स्वभाव का है।
वहाँ पर है सच्चा ज्ञान
सही ज्ञान हो तो उसकी निशानी क्या है? छोटे बच्चे से लेकर वृद्ध तक के, छोटे बालक अर्थात् डेढ़ वर्ष से लेकर अस्सी वर्ष तक के, संसारी पद से लेकर संन्यासी पद तक के, सभी मनुष्यों को आकर्षित करता है क्योंकि फेक्ट वस्तु है। बालक को भी अंदर दर्शन होते हैं । जिन धर्मस्थानों पर बालकों को हेडेक हो जाए, वहाँ पर सही धर्म नहीं है, वह सब रिलेटिव है।