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आप्तवाणी-३
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करता है, कुछ न कुछ सर्वे करते हैं, लेकिन अंदर का सर्वे कभी भी नहीं किया।
सेठ आपकी सुगंध आपके घर में आती है? प्रश्नकर्ता : सुगंध मतलब क्या?
दादाश्री : आपके घर के सब लोगों को आप राज़ी रखते हो? घर में कलह नहीं होती न?
प्रश्नकर्ता : कलह तो होती है। रोज़ होती है।
दादाश्री : तब ये किस तरह के पैदा हुए आप कि पत्नी को शांति नहीं दी, बच्चों को शांति नहीं दी, अरे! आपने खुद को भी शांति नहीं दी! आपको मोक्ष में जाना हो तो मुझे आपको डाँटना पड़ेगा और आपको देवगति में जाना हो तो दूसरा सरल रास्ता आपको लिख दूँ। फिर तो मैं आपको ‘आइए सेठ, पधारिए' ऐसा कहूँगा। मुझे दोनों भाषाएँ आती हैं। यह भ्रांति की भाषा मैं भूल नहीं गया हूँ। पहले 'तुंडे तुंडे मतिर्भिन्ना' थी, वह अभी तुमडे तुमडे मतिर्भिन्न हो गई है! तुंड गए और तुमडे रहे! संसार के हिताहित का भी कोई भान नहीं है।
ऐसा संस्कार सिंचन शोभा देता है? माँ-बाप के तौर पर किस तरह रहना उसका भी भान नहीं है। एक भाई थे, वे खुद की पत्नी को बुलाते हैं, 'अरे, मुन्ने की मम्मी कहाँ गई?' तब मुन्ने की मम्मी अंदर से बोलती है, 'क्यों, क्या है?' तब भाई कहें, 'यहाँ आ, जल्दी जल्दी यहाँ आ, देख, देख तेरे बच्चे को! कैसा पराक्रम करना आता है, अरे देख तो सही!! मुन्ने ने पैर ऊँचे करके मेरी जेब में से कैसे दस रुपये निकाले! कैसा होशियार हो गया है मुन्ना!!'
घनचक्कर, ऐसे कहाँ से पैदा हुए? ये बाप बन बैठे! शरम नहीं आती? इस बच्चे को कैसा प्रोत्साहन मिला, वह समझ में आता है? बच्चा देखता रहा कि मैंने बहुत बड़ा पराक्रम किया! ऐसा तो शोभा देता है? कुछ नियमवाला होना चाहिए न? यह हिन्दुस्तान का मनुष्यपन इस तरह लुट जाए, वह क्या शोभा देता है हमें? क्या बोलने से बच्चे को अच्छा