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आप्तवाणी-३
दादाश्री : 'ज्ञानीपुरुष' के अलावा कोई भी व्यक्ति सेल्फ रिअलाइज़ेशनवाला नहीं होता। आत्मज्ञानी, वह पद आसान नहीं है। बाकी ज्ञानी तो बहुत तरह के होते हैं। शास्त्रज्ञानी होते हैं, अन्य प्रकार के ज्ञानी होते हैं, यह तो हिन्दुस्तान है।
सामान्य ज्ञान : विशेष ज्ञान प्रश्नकर्ता : 'आप्तवाणी' में एक वाक्य है- 'सामान्य ज्ञान में रहना, विशेष ज्ञान में मत जाना', इसे समझाइए।
दादाश्री : अभी जो विशेष ज्ञान है, वह बुद्धि में जाता है और बुद्धि के साथ हमेशा अहंकार होता ही है। सामान्य ज्ञान अर्थात् सभी में शुद्धात्मा 'देखते' रहना। यदि हम जंगल में गए हों और सभी पेड़ों के शुद्धात्मा स्वरूप से दर्शन करें, तो उसे सामान्य ज्ञान कहते हैं। और यह पेड़ नीम का है, यह आम का है, इस तरह से देखना, वह विशेष ज्ञान कहलाता है। सामान्य ज्ञान अर्थात् दर्शन उपयोग।
प्रश्नकर्ता : विशेष ज्ञान और संचित ज्ञान में क्या फर्क है?
दादाश्री : विशेष ज्ञान में बुद्धि का उपयोग होता है और संचित ज्ञान में चित्त का उपयोग होता है। बुद्धि कभी गलत सिद्ध हो सकती है कि, 'यह पेड़ मैंने कहीं पर देखा है, भूल गया हूँ', इस तरह बुद्धि को उल्ट-पलट करके याद करना पड़ता है।
अनुभवी को, पहचानें किस तरह? प्रश्नकर्ता : हमें आत्मा पकड़ना है, पकड़ने जाते हैं, बहुत ही इच्छा होती है, लेकिन पकड़ में क्यों नहीं आता?
दादाश्री : वह ऐसे पकड़ में नहीं आ सकता। आत्मा तो क्या, आत्मा की परछाई तक पकड़ में आ सके, ऐसा नहीं है। आत्मा की परछाई को पकड़ ले न, तो भी कभी न कभी आत्मा मिल जाएगा।
प्रश्नकर्ता : स्व-पर प्रकाशक, ऐसी चैतन्य सत्ता का अनुभव हो गया है, वह कैसे समझ में आएगा?