Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका टीका-अनुवाद : नव अध्ययन स्वरूप ब्रह्मचर्य नाम का पहला श्रुतस्कंध कहा, अब दूसरे श्रुकस्कंध का प्रारंभ करतें हैं... इसका परस्पर संबंध इस प्रकार है कि- प्रथम श्रुतस्कंध में आचार का परिमाण कहते समय कहा था कि- अट्ठारह हजार पद परिमाण नव ब्रह्मचर्य अध्ययन : यह आचारांग सूत्र है... तथा इस आचारांग सूत्र की पांच चूलिका भी है, जो पद संख्या-परिमाण की दृष्टि से बहु बहुतर है... पहले श्रुतस्कंध में नव ब्रह्मचर्याध्ययन कहे है, किंतु उनमें कहने योग्य समस्त अर्थ हम नही कह पायें है, और जो कहा है वह भी संक्षेप से कहा है, अतः जो अर्थ नही कहा है उसको कहने के लिये, एवं जो संक्षेप से कहा है, उसको विस्तार से कहने के लिये प्रथम श्रुतस्कंध से आगे जो चार चूलिकाएं हैं वे उक्त और अनुक्त अर्थ को कहने के लिये यहां अब चूलिकाएं कहतें हैं... चार चूलिका स्वरूप ही यह द्वितीय श्रुतस्कंध है... इस प्रकार के संबंध से आये हुए इस दुसरे श्रुतस्कंध की व्याख्या का प्रारंभ मैं (शीलांकाचार्यजी) करता हूं... यहां अव्य-पद के नाम एवं स्थापना निक्षेप सुगम होने से अग्रपद का द्रव्य निक्षेप कहतें हैं... द्रव्य अय के दो प्रकार हैं आगम से एवं नोआगम से __ तद्व्यतिरिक्त के तीन प्रकार हैं 1. सचित्त, 2. अचित्त एवं 3. मिश्रद्रव्य का वृक्षकंत (भाला) आदि का जो अग्र भाग है वह द्रव्य निक्षेप है... तथा अवग्राहना-अग्र-जिस द्रव्य का नीचे की ओर जो अवगाहन वह अवगाहनाय... जैसे कि- मनुष्य क्षेत्र (अढी द्वीप) में मेरू पर्वत के सिवा जो अन्य पर्वत हैं वे सभी अपनी ऊंचाई के चौथा भाग भूमि में अवगाहन करके रहे हुए है... जब कि- मंदर मेरू पर्वत तो एक हजार योजन अवगाहन करके रहा हुआ है... तथा आदेश-अय-आदेश याने व्यापार-कार्य में जोडना... यहां अन्य शब्द परिमाण वाचक है... इसलिये जहां परिमाण का आदेश दिया जाय वह आदेशाय... जैसे कि तीन पुरुषों के द्वारा कर्म-कार्य करवानेवाला, अथवा तीन पुरुषों को भोजन करवानेवाला... तथा काल-अय- अधिक मास... अथवा अय-शब्द परिमाण-वाचक है... वहां . जरा काल... अतीतकाल... अनादि काल अनागतकाल... अनन्त अद्धा-काल... अथवा सभी अद्धा-काल... क्रम-अग्र.... क्रम से = परिपाटी से जो आगे है वह क्रमाय... यह क्रमाय द्रव्यादि चार प्रकार से है, उनमें द्रव्याय- एक परमाणु से द्वयणुक... द्वयणुक से त्रिपरमाणु इत्यादि... गणनाय- संख्या-धर्मस्थान से अन्य संख्या धर्मस्थान दश