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[ भगवान महावीर
नहीं लगा। जिसका मन आध्यात्मिक प्रवृत्ति में लगा हो, अहिंसा. वृति से परिपर्ण हो, उसे यद्धविद्या अथवा धनविद्या जैसी हिंसक विद्या मे रस कहाँ से प्राप्त हो ? शिल्पशाला के आचार्य ने उनके मन मे इस प्रकार की अभिरुचि जगाने का पूर्ण प्रयत्न किया, तब उनमें परस्पर जो वार्तालाप हुआ, वह बहुत ही सूचक था । आखिर शिल्पगाला के आचार्य ने सिद्धार्थ राजा को बतलाया कि राजकुमार बुद्धि-प्रतिभापूर्ण है, किन्तु उन्हे यहाँ दी जानेवाली शिक्षा के प्रति तनिक भी अभिरुचि नही है। अत. इन्हें राजमहल मे ही रखें और यथेच्छ प्रवृति करने दें। सिद्धार्थ राजा ने शिल्पगाला के आचार्य की सम्मति के अनुसार कार्य किया और तब से वर्धमान कुमार राजमहल मे यथेच्छ विहार करने लगे। • वैवाहिक जीवन
भगवान् महावीर ने युवावस्था मे प्रवेश किया, तब उनके अन्तर मे जन्मसिद्ध वैराग्य की वल्लरी अंकुरित हो रही थी, इसी से उनकी अभिरुचि विवाहित होने को नहीं थी, किन्तु माता के आरहवा उन्होंने समरवीर नामक एक महा सामन्त की पुत्री यगोवा के माय विवाह किया। कालक्रम से उन्हें एक पुत्रीरत्न की प्राप्ति हुई और उसका नाम 'प्रियदर्शना' रखा गया।
पुत्री प्रियदर्गना का विवाह, वड़ी होने पर, उसी नगर में 'जमाली' नामक क्षत्रियकुमार के साथ हुआ जो कि भगवान की वहन मुदर्शना का पुत्र था।