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[श्री महावीर-वचनामृत
जीव रात-दिन करुण स्वर से आनद करते हैं। फिर परमावामी उनके छेदे हुए अगों को अग्निज्वाला से जलाते हैं और उस पर जल्द में जल्द क्षार छिड़कते हैं, अतः इन अंगो मे से रक्त और मास अधिक प्रमाण मे झरते रहते हैं। रुहिरे पुणो वच्चसमुस्सिअंगे,
भिन्नुत्तमंगे वरिवत्तयंत्ता। पयंति णं णेरइये फुरते,
सजीवमच्छे व अयोकवल्ले ॥६॥
[सू० ० १, भ० ५, उ० १, गा० १५ ] जब पापी जीव नरक मे उत्पन्न होते हैं, तव परमावामी उसका सिर काटते हैं, उसके शरीर मे से रक्त निकालते हैं और घवक्ते लोहे के कडाह मे फेंक कर खूब उबालते हैं। इस समय वे पापी जीव जिस तरह तपे हुए तवे पर मछली तडफड़ाती है, उसी तरह असह्य दुखों से पीडा पाते तड़फड़ाते हैं। नो चेव ते तत्थ मसीभवंति,
ण मिज्जति तिब्बभिवेयणाए । तमाणुभागं अणुवेदयंता,
दुक्खंति दुक्खी इह दुक्कडेणं ॥१०॥
[सू० ० १, भ०५, उ० १, गा० १६] नारकीय जीवो को परमावामी उबालते और मुंजते हैं, तो भी वे