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[श्री महावीर-चनामृत कर्मों के कारण को अर्यात मिथ्यात्व, अविरति आदि को दूर करो। क्षमा, सरलता, मृदुता, निर्लोभतादि प्राप्त कर यश का संचय करो। ऐसा करनेवाला मनुष्य पार्थिव शरीर छोडकर ऊर्ध्व दिशा की
ओर प्रयाण करता है, अर्थात् स्वर्ग अथवा मोक्ष मे जाता है । विसालिसेहिं सीलेहिं, जक्खा उत्तर उत्तरा । -महासुक्का व दिप्पंता, मन्नंता अपुणच्चयं ॥ १४ ॥ - उत्कृष्ट आचारो का पालन करने से जीव उत्तरोत्तर विमानवासी देव बनता है। वहां वह अतिशय सुशोभित और देदीप्यमान शरीर धारण करता है तथा स्वर्गीय सुखों मे इतना लीन हो जाता है कि 'मुझे अब यहाँ से च्यवित नही होना है' ऐसा समझ लेता है। अप्पिया देवकामाणं, कामरूवविउविणो । उडूं कप्पेसु चिट्ठति, पुवा वाससया बहू ॥ १५ ।।
देव सम्बन्धित काम-सुखों को प्राप्त एव इच्छानुसार रूप धारण करने की शक्तिवाले ये देव अनेक सैकड़ों पूर्व वर्षों तक ऊंचे स्वर्ग में रहते हैं।
विवेचन-एक पूर्व-७०५६०००००००००० सत्तर हजार पाँच सौ साठ अरव वर्ष। तत्थ ठिच्चा जहाठाणं, जक्खा आउक्सए चुया । उर्वति माणुसं जोणिं, से दसंगेऽभिजायइ ॥ १६ ॥ __ वहाँ अपने-अपने स्थान रहे हुए ये देव आयुष्य का क्षय होने पर मनुष्ययोनि को प्राप्त करते हैं और उन्हे दस अगो की प्राप्ति होती है।