________________
ससारी जीवों का ल्वरूप]
[ २६
जब वे पहली चार पर्याप्तियाँ पूर्ण करे तब पर्याप्त कहलाते है और यदि उन जीवो ने ये पर्याप्तियाँ पूर्ण न की हो अथवा पूर्ण किये बिना हो मृत्यु प्राप्त हो जायं तो अपर्याप्त कहलाते है। पृथ्वीकायिक जीव एकेन्द्रिय है, अतः उन्हे चार पर्याप्तियाँ पूर्ण करनी पड़ती है। __यहाँ इतना स्मरण रखना आवश्यक है कि कोई भी जीव आहार, शरीर और इन्द्रियादि तीन पर्याप्तियो को पूर्ण किये बिना मृत्यु नही पाता।
इस वर्गीकरण के अनुसार पृथ्वीकायिक जीव के मुख्य चार भेद होते है :
१ : सूक्ष्म पर्याप्त पृथ्वीकायिक जीव । २ : सूक्ष्म अपर्याप्त पृथ्वीकायिक जीव । ३ : बादर पर्याप्त पृथ्वीकायिक जीव । ४ : बादर अपर्याप्त पृथ्वीकायिक जीव । वायरा जे उ पज्जत्ता, दविहा ते वियाहिया । सण्हा खरा य वोधन्या, सण्हा सत्तविहा तहिं ॥४॥
[उत्त० अ० ३६, गा० : ७१ ] पर्याप्त वादर पृथ्वीकायिक जीव के दो भेद कहे गये है . -लक्ष्ण अर्थात् कोमल और खर अर्थात् कठोर । इनमे से लक्षण पृथ्वी सात प्रकार की है। किण्हा नीला य रुहिरा य, हलिद्दा सुकिला तहा। पंडुपणगमट्टिया, खरा छत्तीसईविहा ॥ ५ ॥
[उत्त० अ० ३६, गा० ७२ ]