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[ श्री महावीर वचनामृत
नारकी - जीव सात प्रकार के हैं, क्योंकि नरक से सम्बद्ध पृथ्वियां सात प्रकार की हैं । वे इस प्रकार हैं :- (१) रत्नप्रभा, (२) शर्कराप्रभा, (३) वालुकाप्रभा, (४) पङ्कप्रभा, (५) घूमप्रभा, (६) तमप्रभा और (७) तमतमाप्रभा ।
विवेचन—पहली नरक की अपेक्षा दूसरी नरक मे और दूसरी नरक की अपेक्षा तीसरी नरक मे इस प्रकार उत्तरोत्तर हर नरक मे अधिक अन्धकार होता है । जवकि सातवी नरक तमतमा नाम की है, अतः वहाँ घोर अन्धकार होता है ।
पंचिंदिय तिरिक्खा उ, दुविहा ते वियाहिया । गव्भवक्कंतिया तहा ॥४०॥
संमुच्छिम - तिरिक्खा उ,
[ उत्त० अ० ३६, गा० १७० ] पचेन्द्रिय तिर्यंच जीव दो प्रकार के कहे गये हैं :- संमूच्छिम और गर्भोत्पन्न-गर्भज ।
विवेचन—समूच्छिम जीव मनःपर्याप्ति के अभाव मे मूढदशा मे रहते है । वे कुछ पदार्थों मे उत्पन्न होते हैं जबकि गर्भोत्पन्न गर्भ से उत्पन्न होते हैं ।
दुविहावि ते भवेतिविहा, जलयरा थलयरा तहा । नहयरा य बोधव्वा, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ ४१ ॥
[ उत्त० अ० ३६, गा० १७१ ] इन दोनो प्रकार के तियंच जीवों के तीन भेद हैं :- (१) जलचर, (२) स्थलचर और (३) नभचर अर्थात् खेचर । इनके भेद मेरे द्वारा सुनो।