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[श्री महावीर-वचनामृत सम्बाहारं न भुंजति, निग्गंथा राइभोयणं ॥६१||
[दश० अ०६, गा० २५] तभी तो निर्ग्रन्थो रात्रिभोजन करते नहीं, रात्रि मे किसी प्रकार का आहार उपयोग मे लेते नहीं।
चउम्विहे वि आहारे, राइभोयणवज्जणं । संनिही-संचओ चेव, वज्जेययो सुदुक्करं ॥६२।।
[उत्त० अ० १६, गा० ३०] अशन, पान, खादिम और स्वादिम इस चार प्रकार के आहार का रात्रि मे त्याग करना और समय बीत जाने के पश्चात् कुछ भी पास मे नही रखना, ठीक वैसे ही उसका सग्रह नही करना-यह बात वास्तव मे अत्यन्त कठिन है, (किन्तु सयमी पुरुष को तो ये कठिनाइयाँ सहन करनी ही चाहिये ।)