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निर्वाण-प्राप्ति
[७५ श्रमणोपासक वर्ग में मगधराज श्रेणिक, उनका पुत्र अजातशत्रु कोणिक, दशार्ण देश का राजा दशार्णभद्र, अपापापुरी का शासक हस्तिपाल तथा ज्ञात, 'लिच्छवी ओर मल्लगण के प्रायः सभी क्षत्रिय राजा थे। आनन्द, कामदेव, चूलणिपिता, सुरादेव, चुल्लगशतक, कुण्डकोलिक, सद्दालपुत्र, महाशतक, नन्दनीप्रिय, सालिहीपिता आदि अनेक धनपति वैश्य थे। इसी प्रकार ब्राह्मण आदि भी अनेक थे।
श्रमणोपासिकाओ का वर्ग बहुत विशाल था। उसमे जयन्ती, सुलसा आदि कई विदुषी सन्नारियाँ सम्मिलित थी। •निर्वाण-प्राप्ति
भगवान् महावीर ने तीस वर्ष तक भारत के विभिन्न भागो मे परि भ्रमण किया और विविध प्रकार की धार्मिक प्रवृत्तियो का आयोजन करके जनता का उद्धार किया, इसे भारतीय जनता कब भुला सकती है?
तीर्थकर जीवन का तीसवाँ चातुर्मास भगवान् ने अपापापुरी के हस्तिपाल राजा की लेखनशाला मे किया। वहां मल्लगण के नौ राजा, लिच्छवीगण के नौ राजा तथा अन्य अनेक उपासको को अड़तालिस घण्टों तक देशना देकर कार्तिक (आश्विन कृष्ण) अमावास्या को निर्वाण प्राप्त हुए।
ऐसे महान् जगदीपक के बुझ जाने पर उसकी कमी को पूरा करने के लिये उस रात्रि मे भव्य दीप-मालाएं जलाई गई। तव से दीपावली का पर्व आरम्भ हुआ।
जहां प्रभु का अग्निसस्कार किया गया, वहाँ की पवित्र भस्म की जनता बड़े आदर से लेने लगी। बाद मेतो वहां की मृत्ति भी उतनी का