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[भगवान् महावीर
अटपटी वाते किया करते थे, परन्तु भगवान् महावीर ने जीवन के परम सत्य बहुत ही स्वाभाविक एव सरल भाषा मे प्रस्तुत किये। ___ धर्म जीवन का आवश्यक अङ्ग है, यह वात भगवान् महावीर ने अनेक उदाहरण और तर्कों द्वारा उचित रीति से समझाई और उसकी परीक्षा करने की सप्रमाण विधि भी वतलाई। __ भगवान् ने कहा कि 'जहाँ अहिंसा हो, प्राणि-मात्र के प्रति दया अथवा प्रेम की भावना हो, वही चर्म है ऐसा समझना चाहिये, हिंसा मे धर्म होना असम्भव है।'
उन्होंने कहा कि 'जहाँ सयम, सदाचार और शील की सुगन्व हो, वही धर्म है, ऐसा समझना चाहिये। असंयम, दुराचार अथवा कुशील हो वहाँ धर्म होना असम्भव है।'
उन्होने यह भी कहा कि 'जहां ज्ञान-पूर्वक तप किया गया हो, इच्छाओं का दमन किया गया हो तथा तृष्णाओं का त्याग किया गया हो, वही धर्म है, ऐसा समझना चाहिये, भोगलालसा, 'विविध इच्छाओं की पूर्ति अथवा तृष्णाओ के ताण्डव मे धर्म होना असम्भव है।'
उनके इन उपदेशों का प्रभाव अत्यन्त आश्चर्यजनक हुआ। (१) हिंसक प्रवृत्तिवाले यज्ञ-यागादि कम हो गये और पशुवलि भी अधिकांश मे बन्द हो गई। (२) जीवन के सामान्य व्यवहार में भी अहिंसा का उपयोग होने लगा और पशु-पक्षियो के प्रति दया की भावना विकसित हुई। (३) स्वेच्छाचार-दुराचार बहुत ही कम हो गया । (४) यथासाध्य संयमी जीवन यापन करने के लिये