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[श्री महावीर-वचनामृत "जिसने निर्वाण-परमशान्ति प्राप्त किया है, उसको हम ब्राह्मण कहते है।
तसपाणे बियाणेत्ता, संगहेण य थावरे । जो न हिंसइ तिविहेण, तं वयं वूम माहणं ॥४॥ जो त्रस और स्थावर प्राणियो को संक्षेप और विस्तार से भलीभाँति जान कर उसकी मन, वचन और काया से हिंसा नहीं करता, उसको हम ब्राह्मण कहते हैं।
काहा वा जइ वा हासा, लोहा वा जइ वा भया । मुसं न वयई जो उ, तं वयं वृम माहणं ॥शा
जो क्रोध हास्य, लोभ अथवा भय से कभी झूठ नहीं बोलता, उसको हम ब्राह्मण कहते हैं।
चित्तमन्तमचित्त वा, अप्पं वा जइ वा वहुँ । न गिण्हाइ अदत्तं जे, तं वयं वूम माहणं ॥६॥
जो सचित्त अथवा अचित्त, अल्प अथवा अधिक (पदार्थ) स्वामी के द्वारा दिये विना ग्रहण नहीं करता, उसको हम ब्राह्मण कहते हैं।
दिब-माणुस-तेरिच्छं, जो न सेवइ मेहुणं । ___ माणसाकाय-बक्केणं, तं वयं वूम माहणं ॥७॥
जो मन-वचन-काया से देव, मनुष्य और तिर्यच ( पशु-पक्षी) के साथ मैथुन सेवन नही करता, उसको हम ब्राह्मण कहते हैं।