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[श्री महावीर-वचनामृत
प्रसिद्ध गणितन प्रो० आल्बर्ट आइन्स्टीन इसी सिद्धान्त का समर्थन करते हुए अपने एक निवन्च मे लिखते हैं कि, "लोक परिमित है और अलोक अपरिमित। लोक परिमित होने के कारण द्रव्य अथवा शक्ति उससे वाहर कही नही जा सकती। लोक से बाहर उस शक्ति का पूर्णतया अभाव है जो गति मे सहायक होती है।" ___ इस बात का उल्लेख यहाँ पर इसलिए किया गया है कि जैसेजैसे विज्ञान प्रगतिपथ पर आगे बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे सर्वज्ञ एव सर्वदर्गी भगवान् महावार द्वारा कथित सिद्धान्तो का दृढता के साथ समर्थन करता जा रहा है।
धम्मो अहम्मो आगासं, कालो पुग्गल-जंतबो । एस लोगोत्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदं सिहि ॥२॥
[उत्तः अ० २८, गा७] धर्म, अवर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव-इन छह द्रव्यों के समूह को मर्वी जिन भगवन्तों ने लोक कहा है।
विवेचन-लोक जीव और अजीवों से अर्यात् चेतन तथा जड पदार्थों में व्याप्त है यह बात पर कही जा चुकी है। किन्तु उसमे मोलिक द्रव्य कितने हैं ? इसका स्पष्टीकरण इम गाया मे किया गया है। इनमे बताया गया है कि लोक में मौलिक अथवा मूलभूत द्रव्य कुल मिलाकर छह है-पाँच जड़ और एक चेतन । इनमे जड को नंया अधिक होने से इसकी गणना प्रयम की गई है। पांच जड़ द्रव्यो पे नाम इस प्रकार मान्ने चाहिए :