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ब्रह्मचर्य]
[१५७ (७) अधिक चिकने पदार्थों का सेवन, (८) प्रमाण से अधिक आहार, (E) इच्छित शरीर-शोभा और (१०) दुर्जय कामभोग का सेवनये दस वस्तुएं आत्मार्थी पुरुष के लिए तालपुट विष के समान है।
जं विचित्तमणाइन्नं, रहियं थीजणेण य । बंभचेरस्स रक्खट्टा, आलयं तु निसेवए ॥२१॥
[उत्त० भ० १६, गा० १] मुमुक्षु ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिये ऐसे स्थान में निवास करे, जहाँ एकान्त हो, जो कम वस्तीवाला हो और स्त्री आदि से रहित हो। विवित्तसेजासणजंतियाणं,
ओमासणाणं दमिइंदियाणं। न रागसत्तू धरिसेइ चित्तं,
पराइओ वाहिरिवोसहेहिं ।।२२॥
[उत्त० अ० ३२, गा० १२] जिस तरह सर्वोत्तम औषधियो से दूर की गई व्याधियां पुनः अपना सिर ऊपर नहीं उठाती अर्थात पैदा नही होती, ठीक उसी तरह विविक्त शय्या और आसन का सेवन करनेवाले अल्पाहारी तथा जितेन्द्रिय महापुरुषो के चित्त को राग और विषयरूपी कोई शत्रु सता नही सकता, चचल बना नही सकता।
मणपल्हायजणणी, कामराग-विवड़णी । वंभचेररओ भिक्खू, थीकहं तु विवज्जए ॥२३॥
[उत्त० भ० १६, गा०२]