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शिक्षापद]
[४१५ एमेव मोहाययणं खु तण्हा, मोहं च तण्हाययणं वयन्ति ॥१॥
[उत्त० अ० ३२, गा०६ ] जैसे बगुला की उत्पत्ति अडा से और अडा की उत्पत्ति बगुला से होती है, इसी प्रकार तृष्णा की उत्पत्ति का स्थान मोह है और मोह की उत्पत्ति का स्थान तृष्णा है । मायाहिं पियाहिं लुप्पइ,
नो खुलहा सुगई य पेच्चओ ॥१६॥
[सू० श्रु० १, अ० २, उ० १, गा० ३] जो माता, पिता ( पत्नी, पुत्र आदि ) मे मोह करता है, उसको परलोक मे सद्गति सुलभ नही है।
पडिणीयं च बुद्धाणं, वाया अदुव कम्मुणा । आवी वा जइ वा रहस्से, णेव कुजा कयाइ वि ॥१७॥
[उत्त० भ० १, गा० १७] वचन से अथवा काया से लोगो के समक्ष अथवा एकान्त मे आचार्यों के प्रतिकूल आचरण कदाचित् भी नही करना चाहिये।
पढमं नाणं तओ दया, एवं चिट्ठइ सन्नसंजए । अन्नाणी किं काही, किंवा नाहिइ छेय-पावगं ॥१८॥
[दश० अ० ४, गा० १० ] प्रथम ज्ञान है, पीछे दया। इसी प्रकार सर्व सयत-वर्ग स्थित