Book Title: Mahavira Vachanamruta
Author(s): Dhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 460
________________ [ ४३६ ] ११३ ४६ २३६ ३६१ ३५३ २८५ भावस्स मणं गहणं भावेसु जो गिद्धिमुवेइ भासमाणो न भासेज्जा भासाइ दोसे य गणे भिक्खालसिए एगे भिक्तिमच न केयव्व भुओरगपरिसप्पा य भुजित्तु भोगाइ ५० भूएहिं न विरुज्झज्जा भूयाणमेसमाधाओ भोगामिसदोसविसन्ने भोच्चा माणुसए भोगे ४१४ २७७ ३३८ ४०० ३२७ मरिहिसि राय जया ३२८ महासुक्का सहस्सारा २७६ महुकारसमा बुद्धा १४० मता जोग काउ २८६ माइणो कटु माया य २३० माई मुद्धण पडई ४३ मा एय अवमन्नन्ता २०८ मा गलियस्सेव कस ३७० माणविजएणं भते । १६६ माणुसत्तम्मि आयाओ २६५ माणुसत्ते भवे मूल ८१ माणुस्स च अणिच्च माणुस्स विग्गह लद्ध मा पच्छ असाधुता मा पेह पुरा-पणामए १५७ मा य चण्डालिय कासी ३५३ माया पिया एहसा भाया ४४ मायाविजएणं भन्ते । २७५ मायाहिं पियाहिं लुप्पइ २२५ मासे मासे तु जो बालो २०६ माहणा खत्तिया वैसा ३२६ मिच्छादसणरत्ता ७८ २२७ ३६५ १६३ २७७ ३७४ मच्छा य कच्छभा य मणगुत्तयाएण भते । मणपल्हायजणणी मणसा वयसा चेव मणुया दुविहभेया उ मणोगय वक्तगय मणो साहसिओ भीमो मणोहरं चित्तधरं मन्दा य फासा वहु० ३३६ ४१५ ३४३ १६८

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