________________
तीन ऋतु
१०]
[श्री महावीर-वचनामृत दो पक्ष
= माह, महीना दो माह
= ऋतु
= अयन दो अयन
= सवत्सर ( वर्ष * सौ वर्ष
= शताब्दी दस शताब्दी
= सहस्राब्दी चौरासी सौ सहस्राब्दी = पूर्वाङ्ग
चौरासी लाख पूर्वाङ्ग = एक पूर्व [ इस प्रकार एक पूर्व मे ७२५६०००००००००० वर्ष होते हैं।
चौरासी लाख पूर्वो को सम्मिलित करे तो एक त्रुटितान और ऐसे चौरासी लाख त्रुटितान एकत्र करने पर एक त्रुटित होता है। इस तरह आये हुए परिमाण को चौरासी लाख से गुणन करते जायं तो क्रम से अटटाग, अटट, अववाग, अवव, हूहुकाग, हूहुक, उत्पलाग, उत्पल, पद्माग, पद्म, नलिताग, नलित, अर्थनिपुराग, अर्थनिपुर, अयुताग, अयुत, नयुताग, नयुत, प्रयुताग, प्रयुत, चूलिकाग, चूलिका, शीर्षप्रहेलिकाग और गीर्षप्रहेलिका नामक माप बनते हैं। शीर्षप्रहेलिका के पर्वो की संख्या १६४ अक तक पहुंचती है । जवकि इस से भी कई अधिक गुनो सख्या को असख्यात कहते हैं।
इस से भी आगे चलकर शास्त्रकारो ने परिमाण बताये हैं। किन्तु उनमे सख्या का कोई उपयोग न होने से उपमानो का आधार लिया
* एक वर्ष में छह ऋतुएँ होती हैं •- हेमन्त, शिशिर, वसन्त, ग्रीप्म, वर्षा,
और शरद् । अयन दो होते हैं '-उत्तरायण और दक्षिणायन ।