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ऐश्या ]
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नीयावित्ती अचवले, अमाई अकुऊहले | विणीयविणए दंते, जोगवं उवहाणवं ॥२४॥ पियधम्मे दढधम्मेऽवजभीरू हिएसए | एयजोगसमाउत्तो, तेओलेसं तु परिणमे ||२५||
[ उत्त० अ० ३४, गा० २७-२८]
नम्रता का वर्ताव करनेवाला, चपलता से रहित, अमायी, अकुतूहली, परम् विनयवान्, इन्द्रियो का दमन करनेवाला, स्वाध्याय मे रत और उपधान आदि करनेवाला, धर्म मे प्रेम और दृढता रखनेवाला, पापभीरु ओर सबो का हित चाहनेवाला पुरुष तेजोलेश्या के परिणामो से युक्त होता है ।
पयणुकोहमाणे य, मायालोभे य पयणुए ।
पसंतचित्ते दंतप्पा, दंतप्पा, जोगवं
उवसंते
तहा
पयणुवाई य, एयजोगसमाउत्तो, पम्हलेसं तु
उवहाणवं ॥२६॥
जिइंदिए । परिणमे ||२७||
[ उत्त० अ० ३४, गा० २६-३० ]
जिसके क्रोध, मान, माया और लोभ बहुत अल्प है, तथा जो प्रशान्त चित्त और मन का निग्रह करनेवाला है, जो योग मे रत और उपधान आदि करनेवाला है, जो अतिअल्पभाषी, उपशान्त और जितेन्द्रिय है, इन लक्षणो से युक्त वह पुरुष पद्मलेग्यावाला होता है ।