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[श्री महावीर वचनामृत माणुसत्तं भवे मूलं, लाभो देवगई भवे । मूलच्छेएण जीवाणं नरगतिरिक्खत्तणं धुवं ॥२४||
[उत्तः भ७, गा० १६] मनुयल यह मूल धन है और राम के नमान देवत्व को प्राप्ति है। अतः मूल के नाग होने से इन जीवों को नररगति और तिनंच गति को ही प्राप्ति होती है।
दुही गई बालम्म, आचर्डवहमूलिया। देवत्तं माणुमत्तं च, जं जिए लोलयानई ॥२५॥ नओ जिए मई होड. दुविहं दुग्ग] गए। दुल्लहा तम्म उम्मग्गा, अद्धाप मुनिरादपि ॥२६॥
[रणः मा., गा• १८] देवन्य और मनुष्यत्य को हार जानेवारे धां और मांगा पार अन्नानी पीनार और वियर दो किलो है। इनमें दरका और दगे यार।
एवं जिर महाए. नुलिया बालं च पंटियं । मकर ने परमन्नि, मागुनि जानिमन्नि जे ||
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