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योग-साधना]
[६५ चित्त की चलता सर्वथा नष्ट होने पर समाहित अवस्था की प्राप्ति होती है और वह अलौकिक आनन्द का अनुभव करवाती है। इस प्रकार भगवान् महावीर को अब सच्चिदानन्द अथवा आनन्दघन अवस्था प्राप्त हो गई थी और वह जीवन के अन्तिम समय तक स्थिर रही थी। ___ इतना स्मरण रहे कि भगवान् एक महान् राजयोगी थे और उन्होंने उत्तरकाल मे अपने शिष्यो को भी राजयोग की ही दीक्षा दी थी।
सामान्यतः योगदीक्षा किसी गुरु से ली जाती है और साधक को गुरु के मार्गदर्शन की पद्धति पर ही आगे बढना पड़ता है, किन्तु भगवान् महावीर ने योगदीक्षा स्वय ली थी और वे अपने अनुभव के आधार पर ही आगे बढ़कर केवलज्ञान की प्राप्ति तक पहुंचे थे। जैन शास्त्रकारो ने उनको 'स्वयसम्बुद्ध' कहा है, इसका यही कारण है। ____ भगवान् ने सर्वविध भय जीत लिये थे तथा मृत्युभय पर भी विजय प्राप्त कर ली थी। साथ ही उन्होने आन्तरिक काम-क्रोधादि सभी शत्रुओ पर विजय प्राप्त की थी, इसलिये उनकी गणना 'जिन' मे की जाती थी।
उत्कृष्ट योग-साधना, उन तपश्चर्या, विशुद्ध जीवन और जहाँ जाएं वही मङ्गल-प्रवर्तन होने से वे सभी के पूजनीय बन गये थे और यही कारण था कि वे 'अर्हत्' के अति माननीय विशेषण से सम्बोधित किये जाते थे।
योग-साधना करते समय भगवान को अनेक प्रकार की सिद्धियाँ