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मूलाओ गंधप्पभवो दुमस्स,
धारा : २३ :
विनय ( गुरु- सेवा )
एवं
साहप्पसाहा विरुहन्ति पत्ता,
जेण
खंधाउ पच्छा समुवेन्ति साहा ।
तओ सि पुष्पं च फलं रसो अ ॥१॥ विणओ, परमो से मोक्खो ।
सुयं सिग्यं,
धम्मस्स
मूलं
कित्तिं
चाभिगच्छन् ||२||
[ दश० भ० ६, उ०२, गा० १-२ ]
वृक्ष के मूल से तना निकलता है । बाद मे तने से विभिन्न शाखाएं निकलती हैं । उन शाखाओं से अन्य कई छोटी-छोटी प्रशाखाएं ( डालियाँ) फूटती हैं । उन प्रशाखाओ पर पत्ते लगते हैं, फिर पुष्प खिलते हैं, फल लगते हैं और उसके पश्चात् फलों मे रस होता है ।
निस्सेसं