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काम-भोग]
[३०१ देवलोक सहित अखिल विश्व में जो कोई शारीरिक और मानसिक दुःख है, वे सब काम-भोग की आसक्ति मे से ही पैदा हुए है। एक मात्र वीतराग ही उनका अन्त प्राप्त कर सकते है।
कामकामी खलु अयं पुरिसे, से सोयइ, जूरइ, तिप्पइ, परितप्पइ ॥३१॥
[मा० श्रु० १, अ० २, उ०५] विषयो का लोलुपी यह पुरुष (विषयों के चले जाने पर ) शोक करता है, विलाप करता है, लज्जा-मर्यादा छोड़ देता है और अत्यन्त पीडा का अनुभव करता है।