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[ श्री महावीर वचनामृत
परन्तु सभी जीव छहों पर्याप्तियों के अधिकारी नहीं हैं । एकेन्द्रिय जीव आहार, शरीर, इन्द्रिय, बोर वामोच्छ्वास-इन चार पर्याप्तयों के अधिकारी हैं । दो इन्द्रियवालों से लेकर असनी पंचेन्द्रिय तक के सभी जीव पांचवी भाषापर्याप्ति के भी अधिकारी हैं और सजी पचेन्द्रिय जीव छहों पर्याप्ति के अधिकारी हैं ।
यहाँ इतनी स्पष्टता करना आवश्यक है कि यदि हम इन्द्रिय के आधार पर संसारी जीवों को विभाजित करे तो पांच विभाग होते है :- (१) एकेन्द्रिय, (२) वेडन्द्रिय, (३) तेइन्द्रिय, (४) चतुरिन्द्रिय और (५) पचेन्द्रिय । इनमे से एकेन्द्रिय जीव को एक स्पर्शनेन्द्रिय होती है । स्सर्वनेन्द्रिय अर्गत स्पर्ग पहचाननेवाली इन्द्रिय: उसका मुल्य साघन चमड़ी है । वेन्द्रिय जीव को स्पर्शनेन्द्रिय के अतिरिक्त रसनेन्द्रिय भी होती है । रसनेन्द्रिय अर्थात् रस स्वाद का परीक्षण करनेवाली इन्द्रिय । इनका मुख्य साधन जिह्वा है । तेइन्द्रिय जीव को इन दो इन्द्रियों के अतिरिक्त तीसरी घ्राणेन्द्रिय भी होती है । घ्राणेन्द्रिय अर्थात् गन्य परखनेवाली इन्द्रिय । इसका मुख्य सावन नासिका है । चतुरिन्द्रय जीव को इन तीन इन्द्रियों के अतिरिक्त चौथी चक्षुरिन्द्रिय भी होती है । चक्षुरिन्द्रिय अर्थात् वस्तुओं को देखनेवाली इन्द्रिय । इसका मुख्य नावनचा - आँख है । बोर पंचेन्द्रिय जीव को इन चार के उपरान्त पाँचवी श्रोत्रेन्द्रिय भी होती है ; श्रोत्रेन्द्रिय अर्थात् सुननेवाली इन्द्रिय । इसका मुख्य सावन कान है।
इनमे से एकेन्द्रिय के जीव चार पर्याप्ति के अधिकारी हैं । अतः