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संसारी जीवों का स्वरूप]
वायरा जे उ पज्जत्ता, ऽणेगहा ते चियाहिया । इंगारे मुम्मुरे अगणी, अचिजाला तहेब य ॥२०॥
[उत्तः अ० ३६, गाः १०८-६] तेजस्कायिक जीव दो प्रकार के है :- सूक्ष्म और वादर, तथा उनके भी पर्याप्त और अपर्याप्त-ऐसे दो भेद होते है। ___जो बादर पर्याप्त तेजस्कायिक जीव है, वे अनेक प्रकार के कहे गये हैं, जैसे कि :-अगारे, चिनगारी, अग्नि, शिखा-(लो), ज्वाला आदि।
विवेचन यहां 'आदि' पद से उल्का, विद्युत तथा अग्निमय ऐसे अन्य पदार्थ भी समझने चाहिये। सुक्ष्म तेजस्कायिक जीव पृथ्वीकायिक सूक्ष्म जैसे ही सूक्ष्म है और वे सकल लोक में व्याप्त है।
दुविहा वाउजीवा उ, सुहुमा वायरा तहा। पज्जत्तसपज्जत्ता, एवमए दुहा पुणो ॥२१॥ बायरा जे उ पज्जत्ता, पंचहा ते पकित्तिया । उकलिया संडलिया, घण-गुंजा-सुद्धवाया य ॥२२॥
[उत्त० अ० ३६, गा० ११७-८] वायुकायिक जीव दो प्रकार के है ; सूक्ष्म और बादर तथा इनके भी पर्याप्त और अपर्याप्त-ऐसे दो भेद है।।
जो बादर पर्याप्त वायुकायिक जीव है, वे पांच प्रकार के कहे गये हैं। जैसे कि :-(१) उत्कलिक वायु, (२) मण्डलिक वायु, (३) धन वायु, (४) गूजन वायु और (५) शुद्ध वायु !