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धारा :३४:
पडावश्यक अनुयोगद्वार-मूत्र मे व्हा है:नावस्सय अवस्सकरणिज्ज, धुव-निग्नहो विसोही अ। अज्मयणठवगो, नाओ नाराह णा मन्गो ।।
आवश्यक, अवश्यकरणीय, व, निग्रह, विशोषि, अव्ययनषड्वर्ग, न्याय, आरावना और मार्ग ये पर्यायशब्द है।
आवश्यक के अर्य के सम्बन्ध मे उसमे कहा है कि:समणेण सावरण य, अवस्त-वायव्य हवइ जन्हा।
अन्तो नहो-निसस्स य, तम्हा भावत्सय नाम ।। जो दिन और रात्रि के अन्तिम भाग में भ्रमण तथा श्रावकों द्वारा अवश्य करने योग्य है, इसलिये वह आवश्यक पहलाता है।
वर्तमान में इस क्रिया को प्रतिक्रमग मद में पहचानने का प्रचलन है। दिन के अन्तिम भाग में जो प्रतिक्रमग गिया जाय यह देवनिक (देवन्धि ) प्रतिक्रमण और गमि के अन्तमान में किया जाय वह गरिर (ग) प्रतिमा कहलाता है। इन अनि.
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