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संसारी जीवों का स्वरूप ]
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भवनवासी के दस प्रकार है, वाणव्यन्तर अर्थात् वनचारी देवो के आठ प्रकार है, ज्योतिषी देवो के पाँच प्रकार है और वैमानिक देवो के दो प्रकार ।
असुरा नाग-सुवण्णा, विज्जू अग्गी वियाहिया । दीवोदहि- दिसा वाया, थणिया भवणवासिणो ॥ ५० ॥ ॥
[ उत्त० अ० ३६, गा० २०६ ] भवनपति के दस प्रकार इस तरह समझने चाहिये : - ( १ ) असुरकुमार, (२) नागकुमार, (३) सुवर्णकुमार, ( ४, विद्युतकुमार, (५) अग्निकुमार, ६) द्वीपकुमार, (७) उदधिकुमार, (८) दिशाकुमार,(९) वायुकुमार और (१०) स्तनितकुमार ।
पिसाय - भूया जक्खा य, रक्खसा किंनरा य किंपुरिसा । महोरगा य गंधव्वा, अड्डविहा वाणमंतरा ॥ ५१ ॥
[ उत्त० अ० ३६, गा० २०७] वाणव्यतर देवो के आठ भेद इस प्रकार बताये गये है (१) पिशाच, (२) भूत, (३) यक्ष, (४) राक्षस, (५) किन्नर, (६) किम्पुरुष, (७) महोरग और (८) गन्धर्व ।
तहा ।
चंदा सूराय नक्खत्ता, गहा तारागणा दिसविचारिणो चैव, पंचहा जोइसालया ||२२||
[ उत्त० अ० ३६, गा० २०६ ]
ज्योतिषी देव पाँच प्रकार के है : - (१) चन्द्र, (२) सूर्य, (३) नक्षत्र, (४) ग्रह और (५) तारा | ये सब मनुष्यलोक मे चर है