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अष्ट-प्रवचनमाता]
एसा पवयणमाया, जे सम्मं आयरे मुणी।। से खिप्पं सव्वसंसारा, विप्पमुच्चइ पंडिए ॥३८॥
[उत्त० अ० २४, गा० २७] जो विद्वान् मुनि उपर्युक्त प्रवचन माताओ का सम्यग् आचरण करता है, वह ससार परिभ्रमण से शीघ्र ही मुक्त हो जाता है।
विवेचन-गृहस्थ साधक भी इन समिति-गुप्तियो का यथाशक्ति पालन करने पर चारित्रशुद्धि का लाभ प्राप्त कर सकता है।