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[श्री महावीर-वचनामृत सर्व प्राणियों को दीर्घकाल के बाद भी मनुष्य-जन्म मिलना दुर्लभ है, क्योंकि दुष्कर्म का विपाक अत्यन्त गाढ होता है। अतः हे गौतम ! तु समय मात्र का भी प्रमाद मत कर ।
विवेचन-कहने का आशय यह है कि प्राणी पहले किये हुए गाढ़ कर्मों को भोग ले और पुण्य का कुछ संचय करे तव ही मनुष्य जन्म की प्राप्ति होती है। एवं भवसंसारे संसरइ, सुहासुहेहिं कम्मेहिं ।
जीवो पमायबहुलो, समयं गोयम ! मा पमायए ॥१४॥
[उत्त० भ० १०, गा० १५] इस प्रकार प्रमाद की अधिकतावाला जीव अपने शुभाशुभ कर्मों से संसार में परिभ्रमण करता है। अतः हे गौतम ! तू समय मात्र का भी प्रमाद मत कर। लळूण वि माणुसत्तणं,
आरियत्तं पुणरावि दुल्लहं। वहवे दसुया मिलक्खुया,
-समयं गोयम ! मा पमायए॥१॥
[उत्त० अ० १०, गा० १६ ] मनुष्य-जन्म मिलने पर भी आर्यत्व मिलना अत्यन्त कठिन है,