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[श्री महावीर-वचनामृत
प्राप्ति होती है। प्रत्याख्यान से संयम की प्राप्ति होती है। सयम से अनास्रव की प्राप्ति होती है। अनास्रव से तप की प्राप्ति होती है। तप से कर्म-क्षय होता है। कर्म-क्षय से अक्रिय अवस्था (गलेगी अवस्था ) प्राप्त होती है और अक्रिय अवस्था से सिद्धि की प्राप्ति होती है।
आलोयण निरवलावे, आवईसु दधम्मया । अणिस्सि ओवहाणे य, सिक्खा निप्पडिक्कमया ॥२४॥ अण्णाणया अलोभे य, तितिक्खा अञ्जवे सुई । सम्मदिट्ठी समाही य, आयारे विणओवए ॥२५॥ धिईमई य संवेगे, पणिहि सुविहि संवरे ।
अत्तदोसोवसंहारे, सव्वकामाविरत्तया ॥२६॥ पच्चक्खाणे विउस्सग्गे, अप्पमादे लवालवे । ज्झाण संवरजोगे य, उदए मारणंतिए ॥२७॥ संगाणं य परिणाया, पायच्छित्तकरणे वि य । आराहणा य मरणंते, बत्तीसं जोगसंगहा ॥२८॥
[सम० सू० ३२] (१) आलोचना करना अर्थात् जानते हुए अयवा नही जानते हुए कोई भी दोप का सेवन हो गया हो तो अपने सद्गुरु के सामने प्रकट करना, (२) आलोचना का प्रकाश न करना, (३) आपत्ति के समय