________________
अमनस्क योग (५)
सामान्य मनुष्य का समय जाग्रत और नींद में बंटा हुआ है— कभी नींद लेता है, कभी जागता है। औदासीन्य में निमग्न योगी न जागता है और न सोता है।
इस विषय में आचारांग का यह सूत्र मननीय हैसुत्त अमुणी सया, मुणिणो सया जागरंति ।
अमनस्क योगी की चेतना की वह दशा होती है जिसमें वह चेतना के महासागर की गहराई में चला जाता है। वहां सतत जागरूकता रहती है। इसलिए इस अवस्था में नींद और जागरण का क्रम समाप्त हो जाता है।
जागरणस्वप्नजुषो जगतीतलवर्तिनः सदा लोकाः । तत्वविदो लयमग्ना नो जाग्रति शेरते नापि ॥
योगशास्त्र १२.४८
२८ जनवरी
२००६
४६ B G
DGD