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मैत्री भावना कोई व्यक्ति पाप अथवा अशुभ का आचरण न करे, कोई व्यक्ति दुःखी न बने, प्रत्येक व्यक्ति बंधन से मुक्त हो, यह मैत्री भावना का चिंतन है। .. उपाध्याय विनयविजयजी के अनुसार मैत्री का अर्थ है 'मैत्री परेषां हितचिन्तनं यत्'-दूसरों के हित का चिंतन करना। ___ एक के प्रति मैत्री और दूसरे के प्रति अमैत्री यह व्यावहारिक मैत्री है। आध्यात्मिक मैत्री प्राणी मात्र के साथ होती है।
मा कार्षीत् कोऽपि पापानि, मा च भूत् कोऽपि दुःखितः । मुच्यतां जगदप्येषा मतिमैत्री निगद्यते।।
योगशास्त्र ४.११८
___१६ जून
२००६