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प्रसन्नता का शिखर ।
संगम देव ने भयंकर कष्ट दिये फिर भी दयासिन्धो! तुम्हारी दृष्टि सुप्रसन्न थी। तुमने यही सोचा कि अद्भुत है यह बात-मुझसे जगत् का उद्धार हो रहा है और यह मुझे निमित्त 'बना डूब रहा है।
आदिवासी लोगों ने तुम्हें नाना प्रकार के कष्ट दिये। तुम ध्यान-सुधा के रस में लीन थे। इसलिए तुम्हारी प्रसन्नता कभी टूट नहीं पायी। __ इस प्रकार कर्मक्षय कर तुमने केवलज्ञान प्राप्त किया और उपशम रस से भरी हुई अनुपम वाणी का उद्घोष किया।
संगम दुख दिया आकरा रे, सुप्रसन्न निजर दयाल । जंग उद्धार हुवै मो थकी रे, ए डूबै इण काल॥ लोक अनारज बहु कियो रे, उपसर्ग विविध प्रकार। ध्यान-सुधारस लीनता जिन, मन में हरष अपार ।। इण पर कर्म खपाय नै प्रभु, पाया केवल नाण। उपशम रसमय वागरी रे, अधिक अनुपम वाण ।।
चौबीसी २४.२-४
१७ मार्च २००६