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आर्तध्यान का अधिकारी आर्तध्यान के तीन हेतु हैं१. राग २. द्वेष ३. मोह
राग, द्वेष और मोहयुक्त व्यक्ति आर्तध्यान का अधिकारी होता है। ___ आर्तध्यान तिर्यक् गति का मूल कारण है। हरिभद्र सूरि ने पांचवीं गाथा की वृत्ति में एक गाथा उद्धृत की है, इस प्रसंग में वह उल्लेखनीय है।
आर्तध्यान करनेवाला मनुष्य तिर्यञ्चगति में पैदा होता है। रौद्रध्यान करने वाला नरक गति में, धर्म्यध्यान करने वाला देवगति में और शुक्लध्यान करने वाला मोक्ष गति में जाता है।
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एयं चउव्विहं रागदोससमोहं कियस्स जीवस्स। अट्टज्झाणं संसारद्धणं तिरियगइमूलं ।।
झाणज्झयणं १०
२६ अगस्त २००६