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ध्यान : कालमान (२) जैन योग में ध्यान की कालावधि पर विचार किया गया है। अंतर्मुहूर्त (कुछ सैकेण्ड से लेकर ४ मिनिट) तक एक विषय पर मन की एकाग्रता रहती है। तत्पश्चात् दो विकल्प होते हैं___ प्रथम विकल्प-ध्यान का आलंबन बदल जाता है और परिवर्तित आलंबन पर ध्यान किया जा सकता है। आलंबन का परिवर्तन अनेक बार हो सकता है और इस प्रकार अंतर्मुहूर्त से अधिक समय तक भी ध्यान चालू रह सकता है।
दूसरा विकल्प अन्तर्मुहूर्तावधि के बाद ध्यान छूट जाता है और चिंतन शुरू हो जाता है।
मुहूर्तान्तर्मनःस्थैर्य, ध्यानं छद्मस्थयोगिनाम् । धर्म्य शुक्लं च तद्वेधा, योगरोधस्त्वयोगिनाम्।। मुहूर्तात् परतश्चिन्ता, यद्वा ध्यानान्तरं भवेत्। बह्वर्थसंक्रमे तु स्याद् दीर्घाऽपि ध्यान-सन्ततिः।।
योगशास्त्र ४.११५,११६
५ जुलाई २००६
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