________________
ध्यान की योग्यता : वैराग्य भावना जन्म और मरण का चक्र चल रहा है, धन से शांति नहीं मिलती, पारिवारिक संबंध भी समस्या पैदा करते हैं, संयोग और वियोग का अपना नियम है यह जगत् का स्वभाव है।
जो व्यक्ति जगत के स्वभाव को अच्छी तरह जानता है, वह विरक्त हो सकता है। __जगत् के स्वभाव को जान लेने के बाद भी पौद्गलिक विषयों के प्रति आसक्ति हो सकती है। इसलिए आवश्यक है निःसंग रहने का अभ्यास करना। __जो व्यक्ति निर्भय और आकांक्षा से मुक्त होता है वह विरक्त अवस्था में जा सकता है।
जगत्-स्वभाव का ज्ञान, निःसंगता, अभय और अनाशंसा-इनके समुच्चय का नाम है वैराग्यभावना।
सविदियजगस्सभावो निस्संगो निभओ निरासो य। वेरग्गभावियमणो झाणंमि सुनिचलो होइ।।
झाणज्झयणं ३४
२२ जुलाई २००६
प्र...DG...DR. BG.... PRADE...09-(२२६)
MPGRADE.BADGAOG.....