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एक समय में एक मन
एक क्षण में मानसिक ज्ञान एक ही होता है। यह सिद्धांत जैन-दर्शन को आगम-काल से ही मान्य रहा है।
जैन-दर्शन के अनुसार एक क्षण में दो उपयोग (ज्ञानव्यापार) एक साथ नहीं होते, इसलिए एक क्षण में मानसिक ज्ञान एक ही होता है।
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एगे मणे देवासुरमणुयाणं तंसि तंसि समयंसि ।
ठाणं १.४१
बक
१२ नवम्बर
२००६
३४२