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कल
कलकल कल कल कल - कलकल कल कल कलम कला कला
कषाय-विजय (४) भंते! लोभ-विजय से जीव क्या प्राप्त करता है?
लोभ-विजय से जीव संतोष को उत्पन्न करता है। वह लोभ-वेदनीय कर्म-बंधन नहीं करता और पूर्व-बद्ध तन्निमित्तक कर्म को क्षीण करता है।
लोभविजएणं भंते! जीवे किं जणयइ?
लोभविजएणं संतोषं जणयइ, लोभवेयणिज्जं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ।।
उत्तरज्झयणाणि २६.७१
२६ मई २००६