Book Title: Jain Yogki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya, Vishrutvibhashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati Prakashan

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Page 378
________________ चैतन्य केन्द्र (३) - हठयोग और तंत्रशास्त्र में चैतन्य केन्द्रों को चक्र कहा जाता है। जैन योग में चैतन्य केन्द्रों के अनेक आकारों का उल्लेख मिलता है, जैसे-शंख, कमल, स्वस्तिक, श्रीवत्स, नंद्यावर्त, ध्वज, कलश, हल आदि। ये नाना आकार वाले चैतन्य केन्द्र इंद्रियातीत ज्ञान के माध्यम बनते हैं। इनके माध्यम से चैतन्य का प्रकाश बाहर फैलता है। अतीन्द्रियज्ञान का एक प्रकार है अवधिज्ञान। जैसे जालीदार ढक्कन में रखे हुए दीप का प्रकाश जाली में छनकर बाहर आता है, वैसे ही अवधिज्ञान की प्रकाश-रश्मियां चैतन्य केन्द्रों के माध्यम से बाहर आती है। १७ दिसम्बर २००६

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