Book Title: Jain Yogki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya, Vishrutvibhashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 356
________________ चित्त की अवस्थाएं श्लिष्ट चित्त स्थिर और आनंदमय होता है। सुलीन चित्त अत्यन्त स्थिर और परमानन्दमय होता है। ये दोनों चित्त अपने-अपने योग्य विषय को ग्रहण करते हैं, किन्तु ये बाह्य पदार्थ को ग्रहण नहीं करते। सुलीन चित्त का अभ्यास परिपक्व होने पर निरालम्ब ध्यान की स्थिति प्राप्त होती है। उसमें चेतन समरस हो जाता है और परम आनंद की अनुभूति होती है। श्लिष्टं स्थिरसानन्दं, सुलीनमितिनिश्चलं परानन्दम्। तन्मात्रकविषयग्रहमुभयमपि बुधैस्तदाम्नातम् ।। एवं क्रमशोऽभ्यासावेशाद् ध्यानं भजेत् निरालम्बम्। समरसभावं यातः परमानन्दं ततोऽनुभवेत्।। ___ योगशास्त्र १२.४,५ २५ नवम्बर २००६ FREE DR.BAP........२६-३५५ DEPR.. .... ....

Loading...

Page Navigation
1 ... 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394