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धर्म्यध्यान : आज्ञा विचय (३) आज्ञा विचय का तात्पर्य है-सर्वज्ञ द्वारा प्रतिपादित आज्ञा आगम के विषय में चिंतन करना।
द्रव्य अनन्त पर्याययुक्त है। वह त्रयात्मक है- उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यात्मक है। यह हेतुगम्य नहीं है, आज्ञा सिद्ध है। आज्ञा विचय का प्रयोग करने वाला साधक ध्यान के द्वारा सूक्ष्म तत्त्वों को जानने का अभ्यास करता है।
अनन्तगुणपर्यायसंयुतं तत्त्रयात्मकम्। त्रिकालविषयं साक्षाज्जिनाज्ञासिद्धमामनेत्॥
ज्ञानार्णव ३३.७
१० सितम्बर
२००६
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