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शरीरप्रेक्षा ( ५ )
आंखों को विस्फारित और अनिमेष कर उन्हें किसी एक बिन्दु पर स्थिर करना त्राटक है। इसकी साधना सिद्ध होने पर ऊर्ध्व, मध्य और अधः ये तीनों लोक जाने जा सकते हैं। इन तीनों लोकों को जानने के लिए इन तीनों पर ही त्राटक किया जा सकता है।
भगवान् महावीर ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और मध्यलोक में ध्यान लगाकर समाधिस्थ हो जाते थे ।
इससे ध्यान की तीन पद्धतियां फलित होती हैं
१. आकाश-दर्शन
२. तिर्यग् भित्ति-दर्शन
३. भूगर्भ-दर्शन ।
आकाश दर्शन के समय भगवान ऊर्ध्वलोक में विद्यमान तत्त्वों का ध्यान करते थे । तिर्यग् भित्ति - दर्शन के समय वे मध्यलोक में विद्यमान तत्त्वों का ध्यान करते थे। भूगर्भ-दर्शन के समय वे अधोलोक में विद्यमान तत्त्वों का ध्यान करते थे । ध्यान-विचार में लोक- चिंतन को आलंबन बताया गया है। ऊर्ध्वलोकवर्ती वस्तुओं का चिंतन उत्साह का आलंबन है । अधोलोकवर्ती वस्तुओं का चिंतन पराक्रम का आलंबन है । तिर्यक्लोकवर्ती वस्तुओं का चिंतन चेष्टा का आलंबन है। लोक-भावना में भी तीनों लोकों का चिंतन किया जाता है।
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११ दिसम्बर
२००६
३७१
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