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धर्म्यध्यान : आज्ञा विचय (२) धर्म का संधान करने वाले तथा वीतरागता के अभिमुख व्यक्ति को अरति अभिभूत नहीं कर पाती।
साधक विषयों का त्याग कर संयम में रमण करता है। साधना-काल में प्रमाद, कषाय आदि समय-समय पर उभरते हैं और उसे विषयाभिमुख बना देते हैं। किंतु जागरूक साधक धर्म की धारा को मूल स्रोत (आत्म-दर्शन) से जोड़कर आत्मानुशासन करता रहता है।
संधेमाणे समुहिए।
आयारो ६.७१
६ सितम्बर २००६