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ला कलकल कल कल कालाखाला कल काला कलाकार का
ध्यान का प्रभाव
अर्हत् मल्लि का वर्ण नील है। तुमने निर्मल ध्यान किया और अल्पकाल में (एक प्रहर के बाद) परमज्ञान (केवलज्ञान) पा लिया। ___ तुम्हारे शरीर से कल्पवृक्ष की पुष्पमाला जैसी सुगंध फूट रही थी। देवांगनाओं के नयन रूपी भ्रमर उसके प्रति आकर्षित हो झूम रहे थे।
तुम्हारे प्रसाद से स्वचक्र परचक्र के भय और विविध विघ्न वैसे ही दूर हो जाते हैं, जैसे सिंहनाद सुनकर गजेन्द्र।
नील वर्ण मल्लि जिनेश्वर, ध्यान निर्मल ध्यायो। अल्प काल मांहि प्रभू, परम-ज्ञान पायो।। कल्प पुष्पमाल जेम, सुगंध तन सुहायो। सुर-वधू वर नयन-भ्रमर, अधिक ही लिपटायो।। स्व पर चक्र विविध विघन, मिटत तो पसायो। सिंघनाद थकी गजेन्द्र, जेम दूर जायो।
चौबीसी १६.१-३
२५ जुलाई २००६