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अध्यात्म का आलोक अत्यंत दुर्धर समितियां, गुप्तियां एवं उदार धर्मध्यान और शुक्लध्यान ये मोक्षदायक श्रेयतत्त्व हैं। तुमने अपार प्रसन्नता के साथ इनका वरण किया।
तुमने शारीरिक चंचलता छोड़, पद्मासन की मुद्रा में विराजमान हो उत्कृष्ट ध्यान का आलंबन लिया।
संयम, तप, जप और शील मोक्ष के साधन और महान् सुख देने वाले हैं। अध्यात्म के आलोक से तुमने अनित्य, अशरण और अनंत की अनुप्रेक्षा कर निर्मल ध्यान का प्रयोग किया।
समिति गुप्ति दुर्धर घणां, धर्म शुकल ध्यान उदार रे। ए श्रेय वस्तु शिवदायनी, आप आदरी हरष अपार रे।। तन चंचलता मेट नैं, पद्मासन आप विराज रे। उत्कृष्ट ध्यान तणो कियो, आलंबन श्री जिनराज रे।। संजम तप जप शील ए, शिव-साधन महा सुखकार रे। अनित्य अशरण अनंत ए, ध्यायो निर्मल ध्यान उदार रे।।
____चौबीसी ११.२,३,५
२३ फरवरी २००६