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शरीरप्रेक्षा (१)
शरीरप्रेक्षा की प्रक्रिया अंतर्मुख होने की प्रक्रिया है । सामान्यतः बाहर की ओर प्रवाहित होने वाली चैतन्य की धारा को भीतर की ओर प्रवाहित करने का प्रथम साधन स्थूल शरीर है । स्थूल शरीर के भीतर तैजस और कर्म शरीर हैं। उनके भीतर आत्मा है। स्थूल शरीर की क्रियाओं और संवेदनों को देखने का अभ्यास करने वाला क्रमशः तैजस और कार्मण शरीर को देखने लग जाता है।
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शरीरप्रेक्षा का दृढ़ अभ्यास होने पर शरीर में प्रवाहित होने वाली चैतन्य की धारा का साक्षात्कार होने लग जाता है।
७ दिसम्बर २००६
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