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मनोनिरोध (१) इन्द्रियों की प्रवृत्ति में मन का महत्त्वपूर्ण योग होता है। साधक इन्द्रिय-विजय का प्रयोग करता है। इस विषय में आचार्य शुभचन्द्र का मत यह है कि पहले मन के निरोध का अभ्यास करो। उसका निरोध किए बिना इन्द्रिय-विजय का प्रयत्न सार्थक नहीं होता। ___मन की शुद्धि के द्वारा इन्द्रियों की आसक्ति का विलय होता है। जब मन राग और द्वेष में प्रवृत्त नहीं होता तब वह इन्द्रियविजय का हेतु बन जाता है।
मनोरोधे भवेदुद्धं विश्वमेव शरीरिभिः । प्रायोऽसंवृतचित्तानां शेषरोधोऽप्यपार्थकः ।। कलङ्कविलयः साक्षान्मनःशुद्ध्यैव देहिनाम्। तस्मिन्नपि समीभूते स्वार्थसिद्धिरुदाहृता।।
ज्ञानार्णव २२.६,७
२० नवम्बर २००६
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