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प्रेक्षाध्यान : भावों का उद्गम स्रोत अध्यवसाय के अनेक स्पन्दन अनेक दिशाओं में आगे बढ़ते हैं। वे चित्त पर उतरते हैं। उनकी एक धारा है-भाव की धारा। अध्यवसाय की धारा, जो रंग से प्रभावित होती है, रंग के स्पन्दनों के साथ जुड़कर भावों का निर्माण करती है वह है हमारा भावतंत्र या लेश्या तंत्र। जितने भी अच्छे या बुरे भाव हैं, वे सारे इनके द्वारा ही निर्मित होते हैं।
लेश्या से भावित अध्यवसाय आगे बढ़ते हैं तब ये प्रभावित करते हैं हमारे अन्तःस्रावी ग्रंथि तंत्र को। इन ग्रंथियों के स्राव (हार्मोन) ही हमारे कर्मों के विपाक या अनुभाग हैं। ये हार्मोन रक्त संचार तंत्र के द्वारा नाड़ी तंत्र और मस्तिष्क के सहयोग से हमारे अन्तर्भाव, चिंतन, वाणी, आचार और व्यवहार को संचालित और नियंत्रित करते हैं।
३० नवम्बर २००६