________________
संवरयोग : तपोयोग अध्यात्म-साधना के लिए चार तत्त्वों को जानना आवश्यक है। एक वह जिससे दुःख का सृजन होता है। दूसरा वह जो दुःख होता है। तीसरा वह जिससे दुःख का निरोध होता है। चौथा वह जिससे दुःख क्षीण होता है। जिससे दुःख का सृजन होता है वह आस्रव है। जो दुःख होता है वह कर्म है। जिससे दुःख का निरोध होता है वह संवर है। जिससे दुःख क्षीण होता है वह तप है। संवरयोग और तपोयोग ये दो आध्यात्मिक विकास के उपाय हैं। संवर के द्वारा नए दुःख का सृजन रुक जाता है और तप के द्वारा पुराने दुःख क्षीण हो जाते हैं। नए के निरोध और पुराने के क्षय की स्थिति में वह चैतन्य उपलब्ध होता है जो दुःख से अतीत है।
३१ मार्च २००६
.................-११३
-
PROFIL.२६.....