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मन
निर्विकल्प मन तत्त्व है-आत्मरूप या चैतन्यरूप है। विकल्पजाल में उलझा हुआ मन तत्त्व से दूर चला जाता है। इसलिए साधक को निर्विकल्प रहने का अभ्यास करना चाहिए। - इन्द्रियों के विषयों को ग्रहण करने वाला मन चंचलता की भूमि में परिसंचरण करता है और निर्विकल्प अवस्था में मन का उद्भव नहीं होता, वह चेतना में विलीन रहता है।
निर्विकल्पं मनस्तत्त्वं न विकल्पैरभिद्रुतम्। निर्विकल्पमतः कार्य सम्यक्तत्वस्य सिद्धये।
ज्ञानार्णव ३२.५०
१० नवम्बर २००६